* मुस्कुराते नहीं *
** गीतिका **
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आप क्यों मुस्कुराते नहीं हैं।
स्नेह मन में जगाते नहीं हैं।
छोड़ कर देखिए उलझनों को।
आप हिम्मत जुटाते नहीं हैं।
आस का एक दीपक जलाकर।
क्यों अँधेरा मिटाते नहीं हैं।
हमसफ़र मानते हो हमें पर।
बात मन की बताते नहीं हैं।
गिर गये किन्तु उठना जरूरी।
सत्य क्यों मान जाते नहीं हैं।
जिन्दगी कष्टमय हैं बिताते।
जो कभी जल बचाते नहीं हैं।
हैं कठिन मंजिलें सिर्फ उनकी।
पथ स्वयं जो बनाते नहीं हैं।
जो छुपाते हमेशा हकीकत।
बात सच जान पाते नहीं हैं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य