मुस्कुराता जीवन
मुस्कुराता जीवन
राहों के फूलों को देखो
खिलखिलाता हुआ मौन
अपने स्वभाव जनित गुणों
को बिखेरता हुआ।
हवाओं के झोंको से खेलता ,
अठखेलियां करता हुआ
मानव का राह सरल बनाता है।
हर मानव के जीवन में खुशबू भरता है।
प्रेरणा देता है कि
हे मानव! खिलखिलाओ,नाचो,
गाओ .
अपने भीतर झांको।
सच्चे मन से लोगों की सेवा करो।
अपने खुशबू बिखेरो
अपनी जीवन की राह आसान बनाओ।
चाहे रास्ते कैसी भी हो? पथगमन रोचक बनाओ
जीवन को रोमांचित,आनंदित बनाओ।
जिस तरह पथिक पथ में लगे फूलों को,
फूलों की गलियारों को
स्पर्श करते हुए खेलते हुए
राह पार करता है।
भूल जाता है सफर….. कितनी लंबी थी दुर्लभ थी।
ऐसे ही मानव जीवन है
सत्य के राह पकड़ते ही
असत्य तिरोहित हो जाता है।
जीवन सहज, सरल , और सत्य हो जाता है।
मानव जीवन सार्थक और आनंदित हो जाता है।
उपयोगिता और पूरकता में भागीदार हो पाता है।
प्रकृति की प्रत्येक अवस्था से संतुलन बनाता है,रक्षा करता है।
रचनाकार
संतोष कुमार मिरी “कविराज”
रायपुर छत्तीसगढ़