घुल से गए हो।
तुम मुझमें इस कदर घुल गए हो,
कि मैं अब ख़ुद में भी बचा नही ,
यह कहना भी शायद गलत न होगा,
तुम मुझ में घर कर गए हो क्योंकि,
आहटों में तुम हो, चाहतों में तुम हो,
शिकायतों में तुम हो, इबादतों में तुम हो,
शराफ़तों में तुम हो, शरारतों में तुम हो,
रिवायतों में तुम हो, बगावतों में तुम हो,
सजावटों में तुम हो, लिखावटों में तुम हो,
अदावतों में तुम हो,रफ़ाक़तों में तुम हो।
‘अभि’ तो तुम्हे अब याद भी नही करता,
क्योंकि अब तुम मुझमें घर कर गए हो।
©अभिषेक पाण्डेय अभि