मुसीबत से मुक्ति
मुसीबत से मुक्ति नहीं है मिल रही,
चारों और से विपदा से जानें घिर रही।
एक तरफ आयी है कोरोना महामारी ,
जो हम सब पे पड़ गयी है बहुत ही भारी।
कितने लोग हो रहे संक्रमित कितनी की जानें गयी,
आर्थिक व्यवस्था हो गयी कमजोर जब से ये आयी।
मजदूर अब मजबूर हो गए घर जाने से दूर हो गए,
खाने को ना बचा है कुछ रहने को बाहर छत भी गए
मिलों का सफर पैदल चलके कुछ मजदूर गांव गए,
इस सफर में कितने मजदूर की जानें दिन रात गए।
महामारी नहीं थम रही कितनी और विपदा आयी है,
कभी भूकंप तो कभी तूफान चारों और अब छायी है
बाहर विरानी छायी थम गई लोगों की आवाजाही,
मन्दिर भी कब से बंद पड़े चारों और उदासी छायी।
ममता रानी