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21 Jan 2022 · 1 min read

मुसाफिर (मुक्तक)

मुसाफिर (मुक्तक)
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
मुसाफिर बन के जितने लोग भी इस जग में आते हैं
सफर सौ साल का करके चले सब जग से जाते हैं
किसे मालूम हो पाई है आत्मा जो छिपी भीतर
पहुँचकर ध्यान में बिरले ही उसको जान पाते हैं
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
129 Views
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