मुसाफिर चलते रहना है
तुम्हें बस चलते रहना है।
मुसाफिर चलते रहना है।।
ये मन काॅंपे या डर जाए
या तूफां से सिहर जाए
मिले ऑंधी भी पथ पर या
अंधेरा दिन में घिर आए
सजग रहकर, तुम्हें हर पल
अडिग रह, बढ़ते रहना है।
तुम्हें बस चलते रहना है ।
मुसाफिर चलते रहना है।।
कभी अवमानना करके
क़दम बेख़ौफ़ रूक सकते
कभी थकते से तन को हारने के
क्षण भी ढक सकते
दीये की लौ सा तम हर कर
तुम्हें बस जलते रहना है
तुम्हें बस चलते रहना है
मुसाफिर चलते रहना है
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ