मैं लोगों से कहता रहता था उसके बारे में..
मुसलसल ठोकरो से मेरा रास्ता नहीं बदला…
मुझे गिराने में जमाना बदला, पर मैं नहीं बदला ,
मैं लोगों से कहता रहता था उसके बारे में……
मैं जी नहीं पाऊंगा वह शख्स अगर बदला !
तेरी तलब में छान के आया था मैं पूरी दुनिया …
पानी उफान से उतर आया तो अब क्या बदला ,
बड़ी मुश्किल से तेरे चंगुल से रिहा हुआ हूं……
मैंने तेरे चक्कर में नंबर बदला और घर बदला !
लौट आओ तो हमारे बारे में किसी से ना बोलना ..
मोहब्बतों के दवे पुराने किस्से मत खोलना ,
खुद में झांका तो दुनिया बहुत बड़ी थी अन्दर ..
फिर लिबास बदला किरदार बदला और हुनर बदला !
कवि दीपक सरल