“मुश्किल हो गया”
गाँव-शहर बने श्मशान-क़ब्रिस्तान, बचना मुश्किल हो गया,
अपने अपनों से बिछड़कर कुछ भी, कहना मुश्किल हो गया।
ये सारे जख़्म बड़े गहरे हैं अब तो, सिलना मुश्किल हो गया,
आँखों में दबा जो सैलाब है उसका, थमना मुश्किल हो गया।
हर तरफ़ शवों पर शवों का भार है, थामना मुश्किल हो गया,
विपत्ति पर विपत्ति की मार अपार है, सहना मुश्किल हो गया।
पतझड़ में ख़ुशियों का पता फिर से, मिलना मुश्किल हो गया,
हद हो गई हर घड़ी मातम के ग़म में, रहना मुश्किल हो गया।
घूसख़ोरी-मुनाफ़ाख़ोरी में मानवता, पलना मुश्किल हो गया,
नेतागिरी के लालचवश संविधान, समझना मुश्किल हो गया।
खोकर उस अपने को अब तो “हृदय” संभलना मुश्किल हो गया,
आब-ए-चश्म बनें ख़ून मन की बातें मन में, रखना मुश्किल हो गया।
~ रेखा “मंजुलाहृदय”