मुश्किल से पैदा होते है दो चार इंसान
मुश्किल से पैदा होते है दो चार इंसान ,
टिके रहते हैं बुराइयों के खिलाफ ,
मौका पाकर मन नहीं बदला करते ,
कहीं की सुनहरी सुबह या रंगीन शाम से
नहीं मतलब रखते ,
तौलते है खुद को जमीर के तराजू पर , हर इम्तिहान में पास हो जाते हैं बेखूबी से , पर कुछ जो अंदर से ,
बेहद कमजोर ,
जिनके नहीं है कोई ऊसूल,
इधर उधर मुंह मारते हैं ,
द्विविधा में सदैव
नहीं ले पाते कोई निर्णय
हवा के साथ चलते रहते हैं , बदलते रहते हैं विचार,
वस्त्रों की तरह ,
मुनाफे की बेल ,
देखकर खुश
तलवे भले चाटने पड़े
राग दरबारी हो जाते है ,नहीं करते परहेज चरण चुम्बन से