मुश्किल निभती रीति
बालम तो उस पार हैं ,कैसे पाऊँ प्रीति ।
खोया मैंने आप है ,मुश्किल निभती रीति ।।1
रात दिवा ही रो रही ,पाती रही सुकीर्ति
उनके दर्शन हेतु अब ,बना रही रणनीति ।।2
पता नहीं है वेश का , कैसे मिले प्रतीति ।
हृदय बसा है सिर्फ वह ,कठिन हुई है प्रीति ।।3
जपती उसको आँसुओं , माला नित ही पोति ।
युगों जलाये मैं रही ,अंतर् उसकी जोति ।।4
विरह आग ऐसी लगी ,तपती रहती देह ।
हुए दोष सब भस्म अब,बरस रही है मेह।।5
आओ ले चल ब्याह कर ,तू सच्चा भरतार ।
प्यासा मन तुझ बिन प्रिये ,पहना मुझको हार।।6
पास न जो तुम आ सको ,बुला सको नहिं पास ।
अंतर् में संतोष भर ,पद्म चरण दो आस ।।7
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
स्वरचित सृजन
वाराणसी
4/1/2021