मुश्किलों से निकाल दे या रब
ग़ज़ल
मुश्किलों से निकाल दे या रब।
इस वबा* को तू टाल दे या रब।।*महामारी
तूने ही तो दिया उरूज* इसे। *उदय
अब इसे तू जवाल* दे या रब।।*पतन
गर है शमशीर* हाथ में उसके। *तलवार
कोई हमको भी ढाल दे या रब।।
बुझ न पाये चराग़ अब कोई।
तेल इनमें तू डाल दे या रब।।
हुई जाती हैं ग़र्क़* दरिया में। *डूबना
मेरी कश्ती उछाल दे या रब।।
हर तरफ़ ज़ुल्मतों* का डेरा है। *अँधेरों
हौसलों की मशाल दे या रब।।
दे न पायें जवाब हम जिसका।
अब न ऐसा सवाल दे या रब।।
हो गई हैं ख़ताएं जो हमसे।
ख़ाक उन पर तू डाल दे या रब।।
तुझसे करता “अनीस” ये ही दुआ।
फिर वही माह-ओ-साल दे या रब।।
– अनीस शाह “अनीस”