मुश्किलें हैं आज कितनी आदमी के सामने
मुश्किलें हैं आज कितनी आदमी के सामने
जैसे इक टूटा दिया हो तीरगी के सामने
हम बचायें आज कैसे आन अपने देश की
प्रश्न ये बनकर खड़ा अब हर किसी के सामने
तुम तड़पते ही रहे हो ज़िन्दगी भर प्यास से
आज प्यासे क्यों खड़े जब हो नदी के सामने
नाम दौलत और शोहरत सब हमारे पास पर
कुछ नहीं भाता हमें उनकी कमी के सामने
आज देखो दोस्ती का ये चलन सा हो गया
पीठ पीछे वार अपनापन सभी के सामने
‘अर्चना’ रंगीनियाँ भाती नही हमको कभी
बंदगी में सर झुका बस सादगी के सामने
डॉ अर्चना गुप्ता
20-07-2015