मुल्क ऐसा दुष्ट वो हैवान है
मुल्क ऐसा दुष्ट वो हैवान है
मौत से क्यों अपनी अंजान है
वार चोरों सा हमेशा छिप करे
जो किसी शैतान की पहचान है
रोज लोगों को करे बर्बाद वो
बस तबाही का यही फरमान है
जो सजाये आज अपनी ही चिता
जा रहा जो राह वो शमशान है
बाप से निकला यहाँ बेटा कभी
इसलिये थोड़ा अभी नादान है
बाँट बटवारा देश का जिसने किया
वो जहाँ में आज क्यों बेईमान है
जानता है जो न शिष्टाचार यह
बस पड़ोसी मुल्क का यह ज्ञान है
सब सहन करता रहे बोले न कुछ
वो जहाँ में आज हिन्दुस्तान है
पार सीमा को कर चला आये यहाँ
चार उनके मार दे सम्मान है
दिल दुखाओ तुम किसी का क्यों कभी
इस खुदा के बन्दे का यह गान है
डॉ मधु त्रिवेदी