मुलाकात
लगता है तुम्हें, प्यार की भाषा कम समझ आने लगी है,
हर उम्मीद , हबीब बनकर जिंदगी में उतरने लगी है,
अब भी चाहो तो, मैदान खाली है, उतर आओ मेरी जिंदगी में,
मुसाफिर है हम भी, एक बार गुजर गये तो, फिर मुलाकात हो ना हो.
महेन्द्र सिंह हंस
लगता है तुम्हें, प्यार की भाषा कम समझ आने लगी है,
हर उम्मीद , हबीब बनकर जिंदगी में उतरने लगी है,
अब भी चाहो तो, मैदान खाली है, उतर आओ मेरी जिंदगी में,
मुसाफिर है हम भी, एक बार गुजर गये तो, फिर मुलाकात हो ना हो.
महेन्द्र सिंह हंस