मुलाकात अब कहाँ
वो उमंग कहीं खो गयी,
वो तरंग कहीं खो गयी।
ढूंढती हूँ वो मेरे, जजबात अब कहाँ।
रूठा है मीत मेरा, मुलाक़ात अब कहाँ।।
वो उमंग कहीं खो गयी,
वो तरंग कहीं खो गयी।
साथ थीं बहारें भी, जब उनका साथ था।
खूबसूरत नज़ारे थे, हाथों में हाथ था।
आँखों में नही नींद, वो रात अब कहाँ
रूठा है मीत मेरा, मुलाक़ात अब कहाँ।।
वो उमंग कहीं खो गयी,
वो तरंग कहीं खो गयी।
जिंदगी के इस सफर में, तुम बिन अकेली हूँ
ढूंढती हूँ मीत मेरे, बन गयी पहेली हूँ।
खूबसूरत थे जो वे, हालात अब कहाँ
रूठा है मीत मेरा,मुलाक़ात अब कहाँ।।
वो उमंग कहीं खो गयी,
वो तरंग कहीं खो गयी।
आ जाओ मीत मेरे, करती हूँ इन्तज़ार मैं।
ढूंढ़ती हैं अखियाँ तुझे, रोती हूँ जार-जार मैं।
तुझसे ही मिला प्रेम वो, बात अब कहाँ।
रूठा है मीत मेरा, मुलाक़ात अब कहाँ।।
वो उमंग कहीं खो गयी,
वो तरंग कहीं खो गयी।
ढूंढती हूँ वो मेरे जजबात अब कहाँ।
रूठा है मीत मेरा, मुलाक़ात अब कहाँ।।
वो उमंग कहीं खो गयी,
वो तरंग कहीं खो गयी।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️