विभाजन विभीषिका दिवस….?
भारत अंग्रेजों की लगभग दो सौ साल की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। इस आजादी को पाने के लिए लाखों लोगों ने कुर्बानियां दी है। इसलिए आज जो आजादी हम महसूस करते है वह कोई सस्ती आजादी नही है बल्कि इसके लिए सभी भारतीयों ने फिर चाहे वो किसी भी धर्म के हों या जाति या सम्प्रदाय के सभी की कुर्बानियां है। इसलिए हमको इस आजादी को अपनी जान की तरह सहेजना चाहिए और किन्ही अति सामान्य से राष्ट्रभक्ति एवं धार्मिक नारों के लिए इसे किसी के सामने समर्पित नही कर देना है। यही विरासत है हमारे पूर्वजों की जिसे बनाए रखने के लिए हमको ना पैसा,ना सम्पत्ति और ना ही जान गवानी है, बल्कि समय समय पर ऐसी ताकतों के ख़िलाफ ऐसी आवाज़ बुलंद करनी है जो हमारी इस आजादी को राष्ट्रभक्ति, संस्कृति और धर्म के नाम पर सीमित कर देना चाहते हैं और भारत देश की समामेलित संस्क्रति का गला घोंटना चाहते हैं। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए, सत्ता में बने रहने के लिए।
देश के प्रधानमंत्री ने देश की आजादी के 75वें वर्ष के सम्बोधन पर बहुत उत्साहित भाषण दिया जिसमें वर्तमान की उपलब्धि के साथ साथ भविष्य की योजनाओं का भी खांका खींचा है। प्रशंसनीय है, वर्तमान तो देश के सामने है किंतु भविष्य की योजनाओं पर आशा तो कर ही सकतें है। सफलता और असफलता समय पर नही सरकार की ईमानदारी पर निर्भर करेगी।
इसी सम्बोधन में देश के नेता ने एक नया ही विचार दिया जो मेरी समझ से परे है। मैं नही समझ पाया कि ऐसा क्या जरूरी हो गया कि हमको उस खराब पल को, उस क्रूर समय को और बेरहम दौर को याद करना जरूरी पड़ गया। जिस समय में संयुक्त भारत वर्ष के लोग जानवर हो गए थे, एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे और खुले हथियारों से एकदूसरे का खून सड़कों पर वहा रहे थे। ऐसा समय जब लोग भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के भाईचारे को भूल गए और भूल गए सहीद भगत सिंह और असफाक उल्ला खाँ की शहादत को। और सब कुछ भूल कर क्रूर जानवर बन गए। ऐसी क्या जरूरत हो गयी कि देश आज उस दौर को याद करे..?
अक्सर किसी भी परिवार में ,समाज मे या देश में ऐसी मान्यता है कि खराब समय को बुरा सपना मान कर भुला दिया जाता है क्योकि ये समय लोगों के घाबों को पुनः ताजा कर देता है। उन यादों को पुनः कुरेद देता है जिनसे लोग हमेशा भागते रहते है, जिनके कारण लोग आत्महत्या कर लेते है ,जिनके कारण लोग अवसादग्रस्त हो जाते है। फिर ऐसी यादों के बीज को देश का नेता लोगों के दिमाग मे खाद-पानी देने पर क्यों आमद हो रहा है..?
विभाजन विभीषिका दिवस इसी के बारे में चर्चा कर रहा हूँ। आखिर इसकी क्या जरूरत हो गयी कि अति क्रूर और हैवानियत भरे समय को याद करने की जरूरत पड़ गयी..? और फिर इस दिवश को मनाएंगे कैसे शोक व्यक्त करने के लिए देश के हर सहर कस्बे में मंच लगाकर रुदालियाँ को रुलाएंगे..? या फिर भाषण करेंगे और भाषण में कहेंगे कि वह समय की बजह से नही बल्कि उस समय के नेताओं की बजह से हुआ, इसके लिए अंग्रेज नही बल्कि संयुक्त भारतीय नेता जिम्मेदार थे ..? और फिर देश के स्वतंत्रता सेनानियों की गलतियां निकाली जाएगी..? मगर वो किस लिए और वो भी हर साल..? देश के सामने..? जिन परिवारों ने अपना सब कुछ खो दिया इस विभीषिका में उनको यह बताने के लिए कि इस नेता की बजह तुमको यह दर्द सहना पड़ा।
या फिर इस दिन याद करेंगे कि 20 लाख भारतीय (वर्तमान भारत और पाकिस्तान के लोग) वेबजह मार दिए गए। लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ। लाखों बच्चे अनाथ हो गए और लाखों लोग सम्पत्ति,सम्मान और परिवार से तवाह हो गए। लाखों महिलाएं वैश्या बनने के लोए मजबूर हो गयी और लाखों मर्द हत्यारे बनने के लोए मजबूर हो गए और बच्चे या तो मार दिए गए या वो अनाथ हो गए या फिर सड़क पर भूखा मरने के लिए मजबूर हो गए। क्या ये सब याद करने के लिए यह दिवस मनाया जाएगा। जिससे उन परिवारों में पुनः आक्रोश पैदा हो, पुनः नफरत पैदा हो, और देश मे पुनः भय का माहौल बन जाय..?
सम्पूर्ण विस्व को पता है कि भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था। जिसमे मुख्य भूमिका मुसलिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना की थी ,जो इस्लाम धर्म के लोगों के लिए धर्म के आधार पर एक नया देश पाकिस्तान चाहते थे। और दूसरी तरफ भारत के उस दौर के बड़े से बड़े नेता जिन्ना की इस चाल को असफल करने में नाकामयाब रहे। अब जब इस दिवस को मनाया जाएगा तो इन्ही सब नेताओं की असफलता का ढोल देश के लोगों के सामने पीटा जाएगा..? या फिर देश को बताया जाएगा कि उस समय कोंग्रेस की सरकार इस विभाजन की त्रासदी के लिए जिम्मेबार है..? उस सरकार के नेता पंडित नेहरू उस त्रासदी के लिए जिम्मेवार है..? किसको जिम्मेवार ठहराया जाएगा..?
जाहिर सी बात है मुहम्मद अली जिन्ना को तो नही क्योकि वो तो सर्वसम्मति से जिम्मेवार है ही, किन्तु वह इस बहस में जिन्ना के साथ किसी भारतीय नेता को जिम्मेबार माना जाएगा और पाकिस्तान हितेषी बनाकर उसे राष्ट्रविरोधी साबित करने पर जोर दिया जाएगा। साथ ही पाकिस्तान समर्थित धर्म को इस विभाजन का जिम्मेवार मानकर दण्डित किया जाएगा और लोगों के मन में उनके प्रति नफरत भरी जाएगी।
उस विभाजन की सबसे ज्यादा त्रासदी उस समय के पंजाब,जम्मू कश्मीर, और बंगाल के लोगों ने झेली थी। उनकी सम्पत्ति,परिवार,सम्मान सब खत्म हो गया और वो केम्पों में रहने के लिए मजबूर हो गए। ऐसा नही कि उन लोगों ने ये घटनाएं अपने बच्चो से साझा नही की होंगी..? जरूर और बेजरूर की होंगी। क्या जब ये बच्चे आज पुनः उस त्रासदी की मुर्गा बहस लड़ाई समाचार चैनलों पर देखेंगे तो शांत रहेंगे..? नही रहेंगे..! किन्तु उनकी अशांति देश की अशांति में तब्दील जरूर हो सकती है।
वास्तव में यह एक राजनीतिक प्रपंच है। जिसके द्वारा वर्तमान समय की राजनीति को अपने वोट के रूप में तब्दील करने के लिए निम्न स्तर का प्रयास है। इसके माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से लोगों के सामने कांग्रेस दल को दोषी ठहराया जाएगा, जो बिल्कल भी ठीक नही है। साथ ही वर्तमान की समस्याओं को छुपाकर समाचार चैनलों पर 75साल पुरानी भावनात्मक साम्प्रदायिक वहस को पुनः उठाया जाएगा और मुर्गों की लड़ाई कराई जाएगी। जिसमे उल्टे सीधे सभी प्रकार के ऐतिहासिक तथ्यों को कचड़ा बना कर देश की जनता के सामने परोसा जाएगा ।
देश को समझना चाहिए कि किसी दल का कोई भी नेता इतिहासकार नही है। इसलिए वह जो भी तथ्य देश की जनता के सामने रखेगा वह पूर्णरूप से विस्वसनीय ना होकर बल्कि स्वार्थ परक होगें। इसलिए इस दिवस पर दलों के नेताओं के साथ जितनी भी संगोष्ठियां होंगी वो सब झूठी,नफरतभरी और साम्प्रदायिक होंगी। जिससे देश की समामेलित संस्क्रति को अत्यधिक हानि होने की सम्भावना है।
इसलिए मेरा मानना है की राजनीतिक स्वार्थ को भुनाने के लिए किसी भी दल को किसी भी नेता को ऐसा कोई भी प्रयास नही करना चाहिए जिससे देश की शान्ति भंग हो। अगर वास्तव में आप देशभक्त है और स्वतंत्रता सेनानियों की सहादत का बदला लेना चाहते हैं तो उसे मारो जो प्रत्यक्ष रूप से इस काम के लिए जिम्मेवार है अर्थात इंग्लैंड..!!!