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29 Nov 2022 · 1 min read

*मुर्गे का चढ़ावा( अतुकांत कविता)*

मुर्गे का चढ़ावा( अतुकांत कविता)
———————————————
देवता के आगे मुर्गे को रोली- चावल लगाया गया
फिर तलवार से मुर्गे की गर्दन काटी
देवता की जय बोली
देवता ने न पहले आँख खोली थी
न अब खोली।

फिर मुर्गे को पकाया
और सबने मिल-बाँटकर खाया।

मेरा माथा ठनका
मैने जाँचा ,तो पाया
देवता की नब्ज़ नहीं चल रही थी
देवता गूँगे ,बहरे और अंधे थे,
मुर्गे का चढ़ावा और प्रसाद का वितरण
सब भक्तों के धंधे थे।
————————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

1 Comment · 146 Views
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