मुरी
मुरी
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सफर में एक सहयात्री ने
निद्रा से जागकर अचानक पूछा-
‘मुरी पहुँच गयी क्या?’
तात्पर्य स्पष्ट था
भारतीय रेल पहुँच गयी क्या
मैंने सहज शब्दों में उत्तर दे दिया-
हाँ ‘मुरी’आने वाला है’
सज्जन के चेहरे पर मंद मुस्कान तैर गयी-
भला ‘मुरी’भी कभी आता है
रेलगाड़ी ‘मुरी’ पहुँचती है
मैंने भी स्मित मुस्कान के साथ
कहा-भाई साहब अब ‘मुरी’ ही आता है
कोई ‘मुरी’ नहीं जाता
जैसे ही आप रेल पर ‘मुरी’ जाने को
सवार होते हैं
दौड़ने लगता है ‘मुरी’
दौड़ता रहता है आपके पास पहुंचने को
अनवरत,संघर्षरत
लड़ता रहता है परिस्थितियों से
तभी आप ‘मुरी’के समीप आते हैं
और
जैसे ही आप
प्लेटफार्म पर उतरने को
डब्बे के द्वार पर आते हैं
खुश हो जाता है ‘मुरी’
मुस्कुराता है,गाता है
पूरे जीवन जी लेता है ‘मुरी’
आपको बाँहे फैलाकर समेट लेता है
अपने आपमे समाहित कर लेता है
हाँ वही ‘मुरी’-एक प्रतीक
जो राँची से एक घंटे की दूरी पर
गौतमधारा के बाद
मुस्कुराता हुआ,सुरम्य वन की
गोद में अवस्थित है।
-अनिल मिश्र,प्रकाशित©️®️