मुरारी रे
मुखड़ा
सुनो विनती,बिहारी रे।
दया रखना,मुरारी रे।।
#अंतरा-१
झरे बदरा,खिली खेती।
कभी फसलें,हुई रेती ।।
भरा आँचल,कभी डूबा।
हरा आँचल,कभी शोभा।।
हरो विपदा, हमारी रे।
दया रखना,मुरारी रे।।
#अंतरा-२
फसल गेहूँ,पकी जाती।
कृषक निंदिया,उड़ी जाती।।
सजे सपने, सुनहरे री।
छटें बादल,घनेरे री।।
हमें आशा,तिहारी रे।
दया रखना,मुरारी रे।।
#अंतरा-३
हथेली भर,फसल होती,
थकी काया,निशा ढोती।
चलो बाँटें,कनक दानें,
जुगत ताकत,यही माने।
हरो तृष्णा बुखारी रे।
दया रखना,मुरारी रे।।
#अंतरा-४
नहीं आँखें,भिगाई जी।
दुखों से की,सगाई जी।।
सुखद यौवन,कहाँ पाली।
सदा खाली,रही थाली।।
फिरी सुख पे,बुहारी रे।
दया रखना,मुरारी रे।।
नीलम शर्मा ✍️