!! मुरली की चाह !!
वृंदावन वन की गली-गली में
तेरे ही गुण गाऊं
कर-जोड़ विनती हे”श्याम”
तेरे अधरों से दूर न जाऊं
डूब तेरे अधरों के रस में
रस से भर-भर जाऊं
अधरों के मधु-रस को पीकर
सुध बुध खो जाऊं
कर………………………..
अहो भाग्य प्रभु वर हो कि
हर बार जनम यही पाऊं
श्वासों की हर डोर पकड़ कर
तुझमें ही रम जाऊं
कर……………………….
अंगुली के लयबद्ध मिलन से
जग हर्षित कर जाऊं
छांव तले अधरों के प्रभु वर
स्वर्ग का सुख मैं पाऊं
कर………………………..
गर्व करूं अपने पर अपने
भाग्य पर मैं इतराऊं
बैठ सिंहासन पर अधरों के
झूम, झूम कर गाऊं
कर जोर विनती हे”श्याम”
तेरे अधरों से दूर न जाऊं
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)