” –——————————————— मुफ्त हुए बदनाम हैं ” !!
खिले खिले से फूल यहां हैं , महकी महकी शाम है !
खामोशी हो चाहे लबों पे , चुप चुप सा पैगाम है !!
उम्मीदों की डोर थामकर , बैठे हैं इठलाये !
अनचाहा भी रखा संजोकर , आज तुम्हारा नाम है !!
दुनिया से भी टकरा जायें , दमखम रखते इतना !
हाथ थाम कर सह लेगें हम , चाहे जो अंजाम है !!
थके थके से पांव लिए हम , साँझ निहारा करते !
अपने में ही खुश खुश से हम , मुफ्त हुए बदनाम हैं !!
अपनों ने जो सिला दिया है , किससे करें शिकायत !
एक तुम ही हो मेरे बाकी , सबके सब गुमनाम हैं !!
रोज उदासी का भ्रम तोड़ें , मुस्कानें हम पालें !
आज सुनिश्चित करना कल को , शेष यही अब काम है !!
बृज व्यास