मुफ्त का चंदन
“मुफत का चंदन, घिस रहे मोरे नंदन”
त्योहारों पे आज लोग, एक दूसरे को, इतनी दुआएं दे डालते हैं
कहां रक्खे थे, कहां से लाते हैं, हम क्या, वो खुद नहीं जानते हैं
आज लोगों तक बात पहुंचाने के कई जरिए हैं, अमूमन मुफत हैं
पर दुआ भी इनकी अपनी नही होती उठाई होती है सब जानते हैं
हां, दुआ भी कोई ऐसीवैसी नहीं होती क्या नही दिलाते हैं ये लोग
पर कहने में क्या हर्ज उन्होनें कौनसा यकीं करना है, ये जानते हैं
कोई भी दिन, वार, तिथि, समाज, इलाका, कौम, देश या प्रांत हो
दुआएं फ्री में बंटनी हों तो हर त्योहार पर ये अपना हक़ मानते हैं
आज जहां जो है उसे नज़रंदाज़ कर दूर तक पहुंचने का चलन है
सात समंदर पार सैकड़ों हैं दोस्त, पर पड़ोसी को नही पहचानते हैं
त्योहार मनाओ पर प्यार से, मिलो कम ही लोगों से मगर दिल से
दुआ हो मन में, अमन चैन की, बाकी तो प्रभु स्वयं सब जानते हैं
~ नितिन जोधपुरी “छीण”