मुफलिस को मिले रोटी रुजगार नहीं होते।
गज़ल
221…….1222……221……1222
मुफलिस को मिले रोटी रुजगार नहीं होते।
भाषण से गरीबों के बस पेट नहीं भरते।
खेती में किसानों का हर काम मशीनी है,
अब खेती किसानी में हल बैल नहीं चलते।
जीवन में गुजारा भी कितना है कठिन यारों,
पढ़ लिख के युवाओं को रोजगार नहीं मिलते।
कुछ शख़्स लुटेरे हैं बैठे हैं विदेशों में,
रखवाल की शह पर ही वो मात नहीं खाते।
हिंदू भी रहे लड़ते मुस्लिम भी रहें मरते,
बिन मंदिर ओ मस्जिद के फिर वोट कहां मिलते।
टीवी व सिनेमा में सच कुछ भी नहीं दिखता,
हिम्मत से लिखे सच को अखबार नहीं मिलते।
मुमकिन न हुई या रब बस एक तमन्ना थी,
प्रेमी को मुहब्बत के पैगाम नहीं मिलते।
…….✍️ प्रेमीझ