मुन्नी
सड़क पर भीख मांगती एक बच्ची दिखी , उसने दुपट्टा पकड़ के कहा दीदी दो रूपया दे दो …जैसा हम सभी की भिखारियों को देख के ज्ञान देने की आदत है , मैंने भी शुरू किया की क्या नाम है तुम्हारा ? उसने बोला मुन्नी , मैंने पूछा मुन्नी ये भीख मांगना तो अच्छी आदत नहीं है , पढाई क्यों नहीं करती ? मां – पापा ऐसे भीख मांगने के लिए छोड़ देते हैं तो वो बोली दीदी मां पापा नहीं हैं , पेट भरने का जुगाड़ करूँ की पढाई करूँ , फिर मैंने सोचा क्यों न मैं मुन्नी को घर का कुछ काम करने के लिए ले चलूँ …घर के काम भी हो जायेंगे और मुन्नी पढ़ भी लेगी और उसे इस गरीबी से भी छुटकारा मिल जायेगा …सहसा ख्याल आया की मुन्नी की उम्र तो दस साल है ..अगर मैं उससे काम करवाउंगी तो ये बाल मजदूरी कहलाएगी, अचानक मेरे दिल ने मुझे झकझोरा की की हर भिखारी बच्चे को देख के हम उसे घर पे काम करने का ऑफर ही क्यों देते हैं ? मैंने एक फैसला लिया …वो एक अहम् फैसला था , मैंने मुन्नी से कहा बेटा तुम मेरे साथ चलो , मैंने मुन्नी को अडॉप्ट करने का सोचा , मुझे लीगल प्रोसेस के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी तो मैंने मन ही मन सोचा अगर लीगल मैं मुन्नी को अडॉप्ट कर पायी तो ये सबसे अच्छा नहीं तो मैं उसे अपने बच्चे की तरह ही पढ़ाऊंगी लिखाउंगी उसे एक अच्छा इंसान बनाउंगी , इस तरह मैंने मुन्नी का हाथ पकड़ा और एक नयी ऊर्जा के साथ घर की तरफ बढ़ने लगी |
– द्वारा नेहा ‘आज़ाद’