“मुन्तज़िर बन बैठा तेरे इंतज़ार में”
बढ़ता जाए नशा हौले हौले जिस्म में ख़ुमार क्या है
मेरी आँखों में झाँककर देखों मालूम हो प्यार क्या है
मुन्तज़िर बन बैठा तेरे इंतज़ार में दिल्लगी इक़रार में
तुम भी करके देखों कभी मालूम हो इंतज़ार क्या है
नैना करती हैं इज़हार देखों, चोरी चोरी छुप छुपकर
तुम छलकाओ मदिरा इनमें मालूम हो इज़हार क्या है
कभी आओ मेरे आशियाने आग़ोश में भर लो कभी
दिल से दिल मिलाओ सनम,मालूम हो तक़रार क्या है
दिवाना बनकर करता रहा तुम पर ऐतबार इस क़दर
तुम भी तो करके देखों कभी मालूम हो ऐतबार क्या है
काफ़ी है मेरा इश्क़,इक़ जहाँ से दुज़े जहाँ तक जाने में
तुम भी इश्क़ लड़ाओ ना मालूम हो जाँ निसार क्या है
___अजय “अग्यार