मुनि तरुण सागर के प्रवचनों से
“वैसा मजाक किसी के साथ मत कीजिये जैसा मजाक आप सह नहीं सकते!”
“भले ही लड़ लेना झगड़ लेना पिट जाना या फिर पीट देना मगर कभी बोलचाल बंद मत करना क्यूंकि बोलचाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं!”
“दुसरों के भरोसे जिंदगी जीने वाले लोग हमेशा दुखी रहते हैं, इसलिए अगर हम जीवन सुखी होना चाहते हैं, तो हमें आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करनी चाहिए!”
“माता पिता होने के नाते आप अपने बच्चों को खूब पढ़ाना लिखना और पढ़ा लिखा कर खूब लायक बनाना, मगर ये ध्यान रहे की इतना लायक भी मत बनाना की वह कल तुम्हे नालायक समझने लगे!”
“संघर्ष के बिना मिली सफलता को संभालना बड़ा मुश्किल होता हैं!”
“परम्पराओं और कुप्रथाओं में बारीक़ फर्क होता हैं!”
“कभी तुम्हारे माता पिता तुम्हे डांट दें तो बुरा मत मानना, बल्कि यह सोचना की गलती होने पर माँ बाप नहीं डाटेंगे तो कौन डाटेंगा, और कभी छोटो से कोई गलती हो जाए तो ये सोचकर उन्हें माफ़ कर देना कि, गलतियाँ छोटे नहीं करेंगे तो और कौन करेगा!”
“अमीर होने के बाद भी यदि लालच और पैसों का मोह है, तो उससे बड़ा गरीब और कोई नहीं हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति ‘लाभ’ की कामना करता है, लेकिन उसका विपरीत शब्द अर्थात ‘भला’ करने से दूर भागता है!”
“पैसों का अहंकार रखने वाले हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि पैसा कुछ भी हो सकता है, बहुत कुछ हो सकता है, लेकिन सब कुछ नहीं हो सकता। हर मनुष्य को पैसों की अहमियत समझना बहुत जरूरी है!”
“जीवन में तीन आशीर्वाद जरुरी हैं-बचपन में माँ का, जवानी में महात्मा का और बुढ़ापे में परमात्मा का, क्योकि माँ, महात्मा और परमात्मा से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं! माँ बचपन को संभाल देती हैं, महात्मा जवानी सुधार देता हैं और बुढ़ापे को परमात्मा संभाल लेता हैं!”
“सच्ची नींद और सच्चा स्वाद चाहिए तो पसीना बहाना मत भूलिए, बिना पसीना की कमाई पाप की कमाई हैं!”
“जिस प्रकार पशु को घास तथा इंसान को भोजन की आवश्यकता होती हैं, उसी प्रकार भगवान को भावना की जरुरत होती हैं. प्रार्थना में उपयोग किये जा रहे शब्द महत्वपूर्ण नहीं बल्कि भक्त के भाव महत्वपूर्ण होते हैं!”