मुनासिब न होगा!
हर बार नज़दीक आना मुनासिब न होगा!
अब सारी रस्मे निभाना मुनासिब न होगा!
माना की बहुत दर्द हैं इधर दिल में हमारे!
ज़ख्म सब को दिखाना मुनासिब न होगा!
एक रोज़ होंगी रुख़सत गम की स्याह रातें!
इस दिल को यूँ जलाना मुनासिब न होगा!
बहुत याद आती हैं हमें सब बातें तुम्हारी!
उन यादो को मिटाना मुनासिब न होगा!
गर सुन सको तो लबो की थिरकन सुनो!
धड़कनो को सुनाना मुनासिब न होगा!
#LafzDilSe By Anoop Sonsi