मुद्दत से संभाला था
मुद्दत से संभाला था ,बड़ा ही देखा भाला था।
जाने कब हुआ उसका ,ये तो खेल निराला था।
बात करूं उसकी जब,धड़कन बढ़ जाती हैतब
ऐसे खेल दिखलाया , गुम हो गया जाने कब ।
तरसे बस ये प्यार को, उसके बस दीदार को
ज़रा भी चैन न पाये, क्या कहूं इस बीमार को।
गायब झट से हो गया , जाने कहां खो गया
सोच कर हूं मैं परेशां, ऐसा कैसे हो गया।
सोचने क्या लगे तुम , कैसे हो गये हो गुम।
बात दिल की करूं मैं, देख तुम्हें हुआ गुमसुम।
सुरिंदर कौर