मुद्दतें लगी खुद को चलना सिखाने में,
मुद्दतें लगी खुद को चलना सिखाने में
चंद वक़्त लगा ठोकर को मुझे गिराने में ।
यूँ हीं नही नज़्म-ऐ-गम लिखी जाती ,
जागतें हैं शायर,दर्द को कागज़ों पे लाने में ।
**##@कपिल जैन@##**
मुद्दतें लगी खुद को चलना सिखाने में
चंद वक़्त लगा ठोकर को मुझे गिराने में ।
यूँ हीं नही नज़्म-ऐ-गम लिखी जाती ,
जागतें हैं शायर,दर्द को कागज़ों पे लाने में ।
**##@कपिल जैन@##**