मुट्ठी भर आस
मुट्ठी भर आस रहने दो
विश्वास तनिक सा ही सही
नयनो के इस सूक्ष्म उपांत में
इक नवीन उजास रहने दो
तिमिर सघन गहरा भी होगा
पथ अनाम अविच्छिन्न बनेगा
दीप की मद्धम लौ जलाना
प्रदीप तब वहाँ भर जाना
टूट जाएगी उम्मीद चलते
लड़खड़ाएंगे पग भी ढलते
बाधाओं से कभी न थकना
अबाध,अविकल,सदैव चलना
स्याह निशा भी ढल जाएगी
नीर कुमुदनी खिल जाएगी
रवि फिर से जगमगायेगा
नव प्रभात दिखलायेगा
✍”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक