मुझ पे मरती थी जानती हो क्या
इश्क़ था मुझसे मानती हो क्या
मुझ पे मरती थी जानती हो क्या
क्यों भला जाऊँ दूर तुझसे मै
जी न पाऊंगा देखती हो क्या
आजकल क्यों नज़र नहीं आती
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या
तुमसे मिलने की बेक़रारी हैं
हाल दिल का ये जानती हो क्या
पास आओ जरा देखे तुझको
जान बातों में डालती हो क्या
चाँद शरमा रहा है क्यों तुमसे
इंद्र के देश की परी हो क्या
लग न जाए कहीं नज़र तुझको
चाँदनी तुम बिखेरती हो क्या
रात में नींद क्यों नहीं आती
मेरी आँखों में तुम बसी हो क्या
मक़्ता –
खूबसूरत कँवल बहुत हो तुम
इक मुकम्मल गज़ल बनी हो क्या
बबीता अग्रवाल #कँवल