मुझे स्वीकार नहीं
स्वाभिमान पर चोट मुझे स्वीकार नहीं,
जिस जन में है खोट मुझे स्वीकार नहीं ।
समझौते हो स्वार्थ हेतु स्वीकार नहीं ।
गल्प रहा हो व्यर्थ मुझे स्वीकार नहीं ।
गिरकर स्वर्ण संकलन से क्या होगा,
पाप कमाकर अर्थ मुझे स्वीकार नहीं ।
#विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र