मुझे सुकूँ कहाँ से मिल सकेगा
भला मुझे सुकूँ कहाँ से मिल सकेगा
उस पलंग पर जिसे ….
मज़दूरों से मजबूरन बनाया गया हो
और इससे इतर…
पहले-पहल वो एक पेड़ रहा होगा
हाँ वही जो मुझे साँसे देता है
मेरे ढलती ज़िंदगी में उसकी कमी …
काटा गया हो
उस नाज़ुक निर्जीवता को
चीरे डाली गयी होंगी कई दरमियाँ..
खरोंचा गया होगा उसको रौंदा गया हो वो
भला मुझे सुकूँ कहाँ से मिल सकेगा!!
उस पलंग पर..