मुझे लौटा दो वो गुजरा जमाना …
मुझे लौटा दो वो गुजरा जमाना ,
जो था बड़ा ही प्यारा और सुहाना ।
अमन और सुकून से भरकर सदा ,
जिंदगी गाया करती थी तराना ।
मौसम थे खुशनुमा औ दिलकश ,
कुदरत का काम था नियम से चलना ।
जमीर जिनके जिंदा थे शराफत रवां,
औरतें मानती थी लाज को अपना गहना ।
गुनाह नहीं तो गुनहगार भी कैसे होते !
आवाम का बुलंदी पर था दिनों ईमान ।
सियासत दार अपना फर्ज समझते थे ,
देश और समाज वास्ते करते सब कुर्बान।
भले ही इतने संसाधन न थे ऐशो इशरत के ,
मगर सब्र और सबूरी का था तो खजाना ।
औलाद माता पिता को पूजती तहे दिल से ,
माता पिता का फर्ज था एक मयार बनाना ।
माता पिता अपने लिए नहीं देश के लिए ,
संतानोत्पत्ति को समझते थे यज्ञ समाना।
मगर कहां अब वोह सारी बातें वो आदर्श ,
ना वो मौसम और न ही खुशनुमा जीवन ।
वो रसीले ,मनमोहक गीत संगीत का दौर ,
हाय! कोई लौटा दे जन्नत सा रंगीन जमाना ।
कोई बेशक ले ले मुझसे सारी दौलत ,
मगर लौटा सके तो लौटा दे वोह गुजरा जमाना ।
अफसानों में पढ़कर जिसे देखने को दिल मचले,
मेहरबान होकर लौटा दो मुझे सुनहरा जमाना ।