मुझे लगता था
मुझे लगता था
पितृसत्ता के कारण सबसे ज्यादा पीड़ा
दुनिया की समस्त स्त्री जाति को हुआ है
पर मैं गलत साबित हो गयी
जब देखा मैंने तुम्हारी आँखों को
वो सूनी आँखे रेगिस्तान मामूल हुई
तुमसे तो तुम्हारी ही पितृसत्ता ने
छीन लिए तुम्हारे आँसू बहाने का हक
बता दिया तुम्हें
की आँसू की वजह से तुम्हारा
समूचा पुरुषार्थ धूमिल हो जाएगा
और अंदर ही अंदर तुम्हें बंजर कर दिया
हमारा क्या है
हमारे तो नेत्रों में आज भी जल है
वो जल जो जीवन का धोतक है
जिस दिन इस जल को संभाल नही
पायेंगे मेरे ये नेत्र
उस दिन सारी दुनिया जलमग्न हो जायेगी
और फिर इसी जल में
एक नवीन जीवन का पुनः सृजन होगा
जैसे होता है हर बार
पर तुम्हारे पितृसत्ता ने तुम्हें
महल बनाने के चक्कर में
खण्डर सा उजाड़ दिया है
कितने वीराने लगते हो तुम
और कितना सूनापन है
तुम्हारी आँखों में।।