मुझे मेरी सोच ने मारा
नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||
शिकायत है मुझे दिन से
जो की हर रोज आता है
अंधेरे मे जो था खोया
उसको भी उठाता है
किसी का चूल्हा जलता हो
मेरी चमड़ी जलाता है |
कोई तप कर भी सोया है,
कोई सोकर थका हारा ||
नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||
मै जन्मो का प्यासा हूँ
नही पर प्यास पानी की
ना रह जाए अधूरी कसर
कोई बहकी जवानी की
उतना बदनाम हो जाऊं
वो नायिका कहानी की|
सागर मे नहाता हूँ
मुझे गंगाजल लगे खारा ||
नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||