मुझे भी भगतसिंह बना दे
भगतसिंह की कहानी
मेरी जुबानी
आइए आपको इस सफ़र में ले के चलता हूँ
और आपकी सोच में कुछ विचार बदलता हूँ
इस यात्रा में कुछ तथ्य से पर्दे उठाता हूँ
और आपको सच का एक आइना दिखाता हूँ
भगतसिंह ने चार पंक्तियाँ क्या कही मानो समूचे भारतवर्ष में भूचाल आ गया क्या कभी आपने इन पंक्तियों को दृष्टपात किया है, नहीं, तो आइए मैं आपको इसका साक्षात दर्शन करा दूँ
कमाल-ए-बुजदिली है अपनी ही आंखों में पस्त होना
अगर थोड़ी सी जुर्रत हो तो क्या कुछ हो नहीं सकता
उभरते ही नहीं देती बेइमानियाँ दिल की
नहीं तो कौन सा कतरा है जो दरिया हो नहीं सकता
ये पंक्तियाँ भगतसिंह ने जेल में कही और फिर क्या हजारों भगतसिंह इस धरती पर पैदा हो गये। जैसा कि आप जानते हैं भगतसिंह को फांसी हुई
नहीं हुई झूठ है
और भगतसिंह को फांसी हुई तो उनकी समाधि कहाँ है
महात्मा गांधी की समाधि है
जवाहरलाल की समाधि है
लेकिन उनकी नहीं
ब्रिटिश शासन ने उन्हें तथा उनके साथियों को बड़ी बर्बरतापूर्वक और निर्दयतापूर्वक तरीके से यमुना के तट पर काट दिया
आज भी इतिहास के कुछ पन्ने ऐसे हैं जिसकी पहेली अनसुलझी है
जैसे सुभाषचंद्र बोस की मौत का रहस्य उनकी मृत्यु ताशकंद में हुई या भारत में कहाँ ये ठीक से पता नहीं
तीन आयोग ने अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को प्रदान की लेकिन स्थिति आज भी स्पष्ट नहीं
ये तो ऐसा था कि ब्रिटिश इतिहासकारों ने भारत के जनतंत्र में आक्रोश और आवेश की भावना का संचार ना हो
इसलिए ऐसा इतिहास निर्मित किया जो कि वास्तविक स्थिति से काफी दूरस्थ है
आज भगतसिंह नहीं है
भगतसिंह है
हमारी सोच में
हमारी भावनाओं में
और हमारे विचारों में
भौतिक स्वरूप में तो नि: संदेह नहीं हैं
लेकिन वैचारिक स्वरूप में आज भी हमारे सामने विराजमान हैं देख लिजिये
इसलिए कहता हूँ
तू अमर रहेगा तेरा नाम अमर रहेगा
भगतसिंह रहेगा जब तक दिनकर रहेगा
टीवी में आपने एक विज्ञापन देखा होगा बिनानी सिमेंट का
जिसमें अमिताभ बच्चन कहते हैं
एक लंबी लड़ी है
आप उसकी एक कड़ी हैं
क्योंकि मां बाप कहीं नहीं जाते यहीं रहते हैं सदा के लिए
बिनानी सिमेंट
ठीक उसी प्रकार भगतसिंह भी कहीं नहीं गए यहीं हैं सदा के लिए
आप देखिये तो सही
आपने मेरा रंग दे बसंती चोला वाला गाना सुना होगा
उसका एक मुखड़ा
मरकर कैसे जीते हैं इस दुनिया को बतलाने
तेरे लाल हैं मांए अब तेरी लाज बचाने
मरकर भी जो अमर है वो है
भगतसिंह
अब मेरी एक कविता इसी भावना से ओतप्रोत होकर आपके समक्ष सादर प्रस्तुत है
मेरे देश की धरती मुझे भी एक बार भगतसिंह बना दे
सवाल ये है कि मुझे भी चोला अब बसंती पहना दे
वही अमर गीत मेरे कानों को जमकर फिर सुना दे
मैं भी तो भगत हूँ तेरा मुझे भी अपनी गोद में दफना दे
मरने का कोई गम नहीं मुझे मरने का शान रहे
मैं भी भारत का सपूत हूँ मुझे ये अभिमान रहे
देश धर्म है बड़ा सदा ही मुझे यह ध्यान रहे
सम्पूर्ण जीवन धन्य बने और अर्पित मेरा बलिदान रहे
मेरे देश की धरती मुझे भी एक बार भगतसिंह बना दे
मेरे माथे पर तिलक जीत का शोभायमान रहे
भारत में मैं रहूँ या ना रहूँ पर मेरा मान रहे
देश के लिए सर्वदा मेरी मृत्यु का दान रहे
मरकर उस ‘भगत’की तरह सदा मेरा भी गुणगान रहे
मेरे देश की धरती मुझे भी एक बार भगतसिंह बना दे
भारत अखण्ड अक्षुण्य धनी बलवान और महान् रहे
इस धरती की कोख में ऐसे सपूतों की अपरम खान रहे
माँ गर्व करे अपने लालों पर अमर इसका स्वाभिमान रहे
दसों दिशाओं में भारतवर्ष का स्वर्णिम यशोगान रहे
मेरे देश की धरती मुझे भी एक बार भगतसिंह बना दे
मृत्यु का भय नहीं मुझको कभी चाहे जान जाये या जान रहे
चिंतन मुझे अपने कर्तव्य का प्रतिपल इसका बोध और ज्ञान रहे
जीवन का त्याग करने में तनिक भी ना संकोच ना कोई व्यवधान रहे
जिसने जन्म दिया उसको समर्पित मेरा जीवन उसी को प्रदान रहे
मेरे देश की धरती मुझे भी एक बार भगतसिंह बना दे
युद्धभूमि में मृत्यु को मेरा रणभेदी आह्वान रहे
अवनि और अंबर से भी ऊंची मेरी उड़ान रहे
मेरे हृदय में देशभक्ति की भावना विद्यमान रहे
भारत अमर रहे और अमर इसका बागबान रहे
मेरे देश की धरती मुझे भी एक बार भगतसिंह बना दे
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने का हरदम प्रावधान रहे
निर्भीकता से शत्रु रण में सदा हमसे सावधान रहे
जटिल समस्या का भी बहुत आसान सा समाधान रहे
युद्ध में मृत्यु के आलिंगन का गुंजित गान रहे
मेरे देश की धरती मुझे भी एक बार भगतसिंह बना दे
इस कविता की अंतिम कड़ी
जागृत करे भावना जो खामोश पड़ी
मेरा दिल मेरा मन मेरी जान सब इस देश पर कुर्बान रहे
मेरे मरने के बाद भी इस देश की धरती में मेरा निशान रहे
समझो मेरे मातृ ऋण का यही सबसे सच्चा भुगतान रहे
असंख्य सपूतों से धरती हरी भरी रहे ,ना कभी विरान रहे
हर जनम में यहीं आऊँ यहाँ जिन्दा मेरे शौर्य का बखान रहे
‘आदित्य’सा अमर ‘भगत’का नाम रहे जब तक ये जहान रहे
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.