मुझे बिखरने मत देना
मुझे बिखरने मत देना
संभला हूँ सिद्दतों से
टूट कर जुड़ा हूँ मैं
तुम्हे चाहते मुद्दतों से।
माना कि तेरा चाहना
बस एक तिलस्म सा था
संभला मैं समय से
वरना मैं भस्म ही था।
तुमने मुझे काफिर कहा
तुम भी मुसलमान कहा थे
मैंने पाया सुकून पूजा में
तुम नमाज में भी कहाँ थे।
रफ्ता रफ्ता जिंदगी
धुवां होती रही मुसलसल
यादों से तेरे दूर
अब हो रहा हूँ पल पल।
मैंने जिंदगी को अपने
जिया ही है इस कदर
हकीकत में जीता रहा
ठोका नहीं मुकद्दर।
रूमानियत सिफ़त थी
रंगीनियत थी नकली
उससे जो छन कर निकली
वो जिंदगी ही थी असली।
निर्मेष क्या क्या बया करूँ
सच्चाईया जिंदगी की
जिन्हे गिलौरियां दी मुँह में
उन्हें से गालियाँ थी पायी।
निर्मेष