मुझे पंख दे दो .
होंसलों के पंख थके नहीं,
भी अरमान भी मेरे हारे नहीं ।
लाख मुश्किलें आयें में फिर भी ,
नीड़ का निर्माण करुँगी फिर फिर,
अपनी संसृति हेतु थकुंगी बिल्कुल नहीं।
क्योंकि अपनी आशाओं का दामन
मैने अभी छोड़ा नहीं।
पंख को चाहे कतर दे हालातों के तेज खंजर
टूटे हुए आधे अधूरे पंखों सहित ,
घायल जिस्म के साथ ही सही ,
मैं पीछे पग हटायुंगी नहीं ।
हर हाल में उड़ने को बेताब है ,
मेरे हौसलों के पंख ।