मुझे नज़र आता है बेटी !
मुझे नज़र आता है बेटी, तुझमें सब संसार।
तू शीतल चंदन-सी खुशबू,तू रमणीक बहार।।
गर्जन-तर्जन तू बादल-सी,तू बिजली-सा तार।
सूरज-सी आभा है तुझमें, शीतलता चंदा-सी।
निर्मल गंगा-सी पावन, तू पृथ्वी-सा आधार।
मुझे नज़र आता है बेटी, तुझ में सब संसार।
तू अलौकिक शक्ति रूपा, ज्ञान रूपावतार ।
तू ही ज्वाला,तू कृपाला, तू है देवों का सार ।।
तू जननी जगतारण है, तू मानवता वरदान ।
तुझ बिन सूना साज़, जगत का तू है आधार।।
मुझे नज़र आता है बेटी, तुझमें सब संसार।
क्रूर-कुकर्मी नहीं समझते,तू ली क्यों अवतार।
बिन बेटी क्या इस जग का,हो सकता उद्धार।
बिन भू जैसे उगे बीज न, न बिन बादल पानी।
बिन बेटी न इस जग में, फिर मानव अवतार।
मुझे नज़र आता है बेटी, तुझ में सब संसार–!
तू अस्तित्व मानव जाति तू जीवन का है सार।
वन-पर्वत,नदिया-सागर तू सब विधि आकार।
कहे ‘मयंक’ बिन बेटी नहिं, जीवन के आसार ।
करो न हत्या बोझ समझ,मिट जाएगा संसार।
मुझे नज़र आता है बेटी, तुझमें सब संसार –।
के.आर. परमाल ‘मयंक’