मुझे तो अपनी तलब है…
बस करो अब चुप रहो,
मुझको भी चुपहो जाने दो।
व्यर्थ ना भटको भटकाओ,
ना अब समय गवाने दो।।
मुझे तो अपनी तलब है…
मनमुखता बस बहुत हुई,
अब गुरुमुख हो जाने दो।
इक बूँद सागर में मिल,
सागरमय हो जाने दो।।
मुझे तो अपनी तलब है…
मुझे तो अपनी तलब है,
अब अपने आपमें आने दो।
तूँ तूँ न रहे, मैं मैं न रहूँ,
ये दुई का पर्दा हटाने दो।।
मुझे तो अपनी तलब है…
सुख चैन-मौन समाधि लगा,
मुझको मुझमें खो जाने दो।
गुरु श्रुति- शास्त्र विचारों से,
निज ब्रह्मभाव बढ़ाने दो।।
मुझे तो अपनी तलब है…
लगी भूख मिटे आत्मा की,
गुरुज्ञान में टिक जाने दो।
आत्म रस में तृप्ति होऊँ,
मैं ब्रह्म हूँ ये डकार आने दो।।
मुझे तो अपनी तलब है…
काल – जाल से छुट कर,
महाकालरूप हो जाने दो।
“शंकर” त्यागो जीवभावको,
शिवतत्व में जग जाने दो।।
मुझे तो अपनी तलब है…
By -जयशंकर नाविक