मुझे तुम याद आये –आर के रस्तोगी
जब जब मुसीबते आई
अपनों ही निगाहे फिराई
गेरो ने दिया सहारा
अपनों ने किया किनारा
मै इतनी दुखी हो चली थी
आत्म हत्या करने चली थी
पर मेरे कदम डगमगाए
मुझे तुम याद आये
मुझे तुम याद आये
मै बिस्तर पर बीमार पड़ी थी
जीवन कि अंतिम घड़ी थी
दवाये भी कोई नही लगी थी
बस मृत्यु ही सगी सहेली थी
नर्स व् डाक्टर बहुत आये
भाई-बन्धु व् रिश्तेदार आये
मै तुम्हारा इन्तजार कर रही थी
आँखे भी बाँट जोह रही थी
पर तुम देखने नही आये
मुझे तुम बहुत याद आये
मुझे तुम बहुत याद आये
मै एक सुहागिन अभागिन नारी थी
सुखो से बंचित,दुखों से मारी थी
मेरी मांग सूनी पड़ी थी
माथे पर बिन्द्या नही लगी थी
आँखे काजल के लिए तरस रही थी
होट भी लाली के लिए फडक रहे थे
केश भी मेरे सूखे पड़े थे
तेल की एक बूंद के लिए तरस रहे थे
मुझे कफन तो उढाया
पर सुहागन का जोड़ा न पहनाया
जब मेरी अर्थी तुम्हारे घर से उठी थी
सब साथ साथ चल रहे थे
मेरे दोनों हाथ बाहर खड़े थे
ये दुआ कर रहे थे
तुम एक बार तो आओ
मुझे अपने गले लगाओ
मेरे दिल का आखरी अरमान था
जो अब तक पूरा नही हुआ था
ताकि अंतिम यात्रा पर सुख से जाऊ
मुझे कंधा सभी दे रहे थे
पर तुम कंधा देने तक नही आये
मुझे तुम बहुत याद आये
मुझे तुम बहुत याद आये