मुझे जहरीली हरगिज़ बोलियाँ अच्छी नहीं लगतीं
ग़ज़ल
*******
1-
हँसी होठों को दे अब सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं
जरा शीरी ज़बां कर तल्ख़ियाँ अच्छी नहीं लगतीं
2-
जला दें उन घरों में भी दिया उल्फ़त का ऐ यारों
उजाले को तरसती बस्तियाँ अच्छी नहीं लगतीं
3-
वफ़ा को छोड़ कर ज़ालिम ज़फ़ा का थाम कर दामन
गिराई है जो दिल पर बिजलियाँ अच्छी नहीं लगतीं
4-
अगर देना है तो दे दे मुझे तू सागरे मीना
भरी क़तरों से मय की शीशियाँ अच्छी नहीं लगतीं
5-
मुझे गर्मी दे उल्फ़त की अगरचे इश्क़ है मुझसे
सिहरती सांसों की ये सर्दियाँ नहीं लगतीं
6–
जिसे सुन कर के हो जाता हजारों का जिग़र घायल
मुझे ज़हरीली हरग़िज़ बोलियाँ अच्छी नहीं लगतीं
7-
सबक़ लेता हूँ मै प्रीतम” हमेशा भूल से अपनी
दुबारा हों अगर वो ग़ल्तियाँ अच्छी नहीं लगतीं
**
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
14/10/2017