मुझे जगा रही हैं मेरी कविताएं
मुझे जगा रही हैं
मेरी कविताएं ।
नींद के आगोश में जब भी
हल्की सनसनाहट के साथ
आती हैं, मधुर वायु की
तरह, झंकृत कर देती हैं
तन मन झूम उठते हैं
नींद, आलस्य और
संशय से कहीं दूर
ले जाना चाहती हैं
मेरी कविताएं।
स्वप्नों की रंगीन
अट्टालिकाओं के दीवारों पर
उकरे नक्काशी में खो जाता हूं
गहन तिमिर से दूर
ले जाना चाहती हैं
मेरी कविताएं।
हृदयास्पंदन से हिलोरें लेते हुए
सागर, दूर दूर तक फैले
वन,वाटिकाओं की
मधुररिम डालियों में
झूले झुलाती हैं
मेरी कविताएं।
बोझिल हुई आंखों में
संतृप्त भावों को
रस की तरह अमिय
घोल देना चाहती हैं
मेरी कविताएं।
निद्रा, स्वप्न, आलस्य के
तिकड़ी से दूर
ले जाना चाहती हैं
मेरी कविताएं ।
**मोहन पाण्डेय*भ्रमर*
25-5-2024