*मुझे गाँव की मिट्टी,याद आ रही है*
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मुझे गाँव की मिट्टी , याद आ रही है।
मेरे जिस्म की मिट्टी , छटपटा रही है।
मुझको याद आ रहे हैं,बचपन के दिन,
मेरे साथियों की मंडली , बुला रही है।
वो बारिश में सारा सारा दिन भीगना,
मुझे उस सावन की याद सता रही है।
जिस खंडहर में हम दिन भर छुपते थे,
वो पुरानी हवेली आवाज़ लगा रही है।
वो खेत की बाट पर साइकिल चलाना,
आज इस शहर की सड़क डरा रही है।
जिस पीपल की शाख पे झूले पड़ते थे,
आज भी वो शाख हाथ हिला रही है।
यहां शहर में तो सांस लेना भी दूभर है,
शुद्ध अपने गाँव की , आबोहवा रही है।
जो मज़ा गाँव का है,वो शहर का नहीं,
तल्ख शहर में जिंदगानी ख़फ़ा रही है।
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सुधीर कुमार
सरहिंद,फतेहगढ़ साहिब, पंजाब।