मुझे ऐ नदी !तुझ सा होना नहीं है।
मुझे ऐ नदी !तुझ सा होना नहीं है।
समंदर की बांहों में खोना नहीं है।।
मेरी धार मोड़ेगा क्या कोई पर्वत।
मेरा हौसला इतना बौना नहीं है।।
थके बिन, रुके बिन बढ़ेंगे कदम ये।
इरादा ये लोहा है ,सोना नहीं है।।
उजड़ जाय जो एक झोंके से पल में।
मेरा मन ये ऐसा खतोना नहीं है।।
सृजन औ पतन दोनों मुट्ठी में मेरे।
मुझे भाग्य पर और रोना नहीं है।।
सरोज यादव