मुझे उड़ना है
मुझे उड़ना है खात् में,
पंखविहीन न करना तुम।
मुझे लड़ना है समय से,
गतिहीन न करना तुम॥
उस शून्य की पहेलियों को,
बूझना है मुझे।
अनंत, असार नीरव द्यौ से
कुछ पूछना है मुझे॥
चूमती अंबर उन
अट्टालिकाओं पर,
हिमाद्री पर देवदारु की
विशाखाओं पर।
अपने इन परों से ही
ख्वाब बुनना है मुझे।
सुनहले कल के मोतियों को
चुनना है मुझे।
बयार संग उड़ते
धूल के गुबारों से,
शिखर संग अठखेली करती
सिकोया की कोंपलों से
अपने इन परों से ही
कुछ कहना है मुझे,
संग उनके ही हवाओं में
बहना है मुझे।
किसी अलसाते शुष्क परबत की
खोहों में
किसी ठूठ रेतीले तरु की
परुष खोखरों में
अपने पखों को रगड़ती
गौरैया से
अपने इन परों से ही
बतकही करनी है मुझे,
विशाल सागर की
जलराशि की मचलती चादर से
गलबही करनी है मुझे।
अपने खुरदरे स्पर्श से
मेरे पच्छों को मत छूना,
अपनी ललचाती असंवेदना से
मेरी संवेदना को मत छूना।
तोड़कर मेरे पखों की
कशेरुकाओं को
तुम्हे क्या मिलेगा?
हा! पामर तेरा निष्ठुर अंतर्
न बिखरेगा?
मेरा अस्तित्व हाँ मेरे परों से है,
ज्यूँ तूणीर सजता शरों से है।
अपने परों से ही मुझे
ये भव झेलना है,
बिछती छलावे की
शतरंज को खेलना है॥
#सोनू_हंस