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28 Aug 2016 · 1 min read

मुझसे बिछड़ के आप ज़रा ग़मज़दा न थे

पलकों पे अश्क लब पे भी हर्फ़-ए-दुआ न थे
मुझसे बिछड़ के आप ज़रा ग़मज़दा न थे

मेरी तरह से टूट के बिखरे तो थे मगर
मेरी तरह सिमट के भी सिमटे ज़रा न थे

बेसूद था लिपटना भी दामन से आपके
जब आँख में हम आपकी आंसू नुमा न थे

मैने कभी सफ़र वो गवारा नहीं किया
जिन रास्तों में फूल थे काँटे ज़रा न थे

उसने ये कह के आज मेरे ख़त जला दिये
दिलसोज़ तो बहुत थे मगर ख़ुशनुमा न थे

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