मुझको मुस्काने का हक है।
मुझको मुस्काने का हक है।
मैं फूल बन चुका हूं पहले मेरे सपने छूकर देखो।
मुझमें पराग उत्पन्न हुआ मेरे अपने होकर देखो।
मैं मानव हूँ इतने से ही मुझको इतराने का हक है।
मुझको मुस्काने का हक है।
मेरे भीतर होती रहती हर पल ही जीवन की हलचल।
मेरे करीब आकर सुन लो मुझमें है सरिता की कल कल।
इस कल कल की ध्वनि को पूरे जग में फैलाने का हक है।
मुझको मुस्काने का हक है।
मैं नेह भरी घड़ियों का हूँ प्रतिफल मुझमें है नेह भरा।
मानव मानवता के प्रति है जिसके मन में संदेह भरा।
उसको अपनी बाहों में भर विश्वास जगाने का हक है।
मुझको मुस्काने का हक है।
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