मुझको बचपन फिर दिखता
!!! मुझको बचपन फिर दिखता !!!
एक सुंदर सलोना था गाँव,
जहाँ पेड़ पौधों की थी छाँव,
पगदंडियो का था वो जमाना,
प्रेम स्नेह हीं था बस कमाना,
हरियाली बहुत थी चहुँओर,
सुखद सुहानी थी हर भोर,
कुएँ में कूदकर था नहाना,
घंटो फिर पानी में बिताना,
माटी तन पर खूब लगाना,
तेल लगा कर बाल सजाना,
चुपके चुपके ककड़ी चुराना,
मिलकर मित्रों संग हीं खाना,
वो अमरूद की रखवाली,
चढ़ जाना फिर हर डाली,
किताब हाथ से न छूटती,
खेलने की प्रथा वो न टूटती,
छत पर सोना खूब भाया,
सुबह धूप ने फिर जगाया,
कितना मस्त था बचपन,
खुशियों से भरा था मन,
बैर, अमरूद, खूब खाए,
गन्ने भी मन को बहुत भाए,
पिज्जा बर्गर को न जानते,
सेव चिरोंजी को हीं मानते,
ज्वार की रोटी मैथी भाजी,
खाने को थे रोज हम राजी,
गुल्ली डंडा खूब खेलना,
घरवालो की डांट झेलना,
हाट बाजार में फिर घूमना,
नई नई चीज को तलाशना,
खो खो कबड्डी दौड़ भाग,
राष्ट्रीयगीत के सीखें थे राग,
कमर में रस्सी बांध तैरना,
दिल खोलकर खूब खेलना,
फ़िल्म देखने का था जुनून,
बिन पैसो का था वह सुकून,
गजब थी वो अपनी दुनिया,
अनगिनत थी वो खुशियाँ,
जब जब आँखे बंद करता,
मुझको बचपन फिर दिखता,
—-जेपीएल